इस पार हमारी नौका थी

15-06-2024

इस पार हमारी नौका थी

महेश रौतेला (अंक: 255, जून द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

इस पार हमारी नौका थी
उस पार किसी का घर सुन्दर, 
इस पार प्रतीक्षा जाने की
उस पार नयन थे अति सुन्दर। 
 
इस पार खड़े थे खोने को
उस पार शिखर पर दृष्टि गढ़ी थी, 
नाव चली तो जल छलका
आशा जगमग उड़ चली थी। 
 
जब धुँध मिली आधे में
लहर झील की उत्कट थी, 
गीत कंठ में आया तो
उस पार जाने की इच्छा थी। 
 
इस पार बँधी नौका थी
उस पार खुलकर जाना था, 
आशा के आगे आगे
मन को नतमस्तक होना था। 
 
इस पार लगी अब सन्ध्या है
उस पार भोर को आना है
नौका की पतवारों को
उस पार पहुँचकर रुकना है। 

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