एक अच्छा दिन निकला

01-02-2023

एक अच्छा दिन निकला

महेश रौतेला (अंक: 222, फरवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

एक अच्छा दिन निकला
जो प्रकृति की गोद में था, 
वह मेरे सामने थी
मैं उसके सामने था। 
 
बातें नहीं थीं
समय का आभास था, 
थोड़ा वह मुस्करायी
थोड़ा मैं मुस्कराया। 
 
एक अच्छा दिन निकला
जो शान्त था, 
उसकी लौ मुझमें थी
मेरी लौ उसमें थी। 
 
उस दिन वह भी आयी
मैं भी आया, 
कुछ धूप उसने सेंकी
कुछ धूप मैंने सेंकी। 
 
वह दिन बहुत सलोना था
उसमें भी आग थी, 
मुझमें भी आग थी
सत्य का निवास साथ-साथ था। 
 
दिन निकल रहा था
अन्त में कुछ उसने देखा, 
कुछ मैंने देखा
इसी बीच मन में अमिट परछाई बन गयी। 

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