चुलबुली चिड़िया

07-02-2017

चुलबुली चिड़िया

महेश रौतेला

आज मेरे आहते में
चुलबुली चिड़िया आयी,
कहती है -

हिमालय से उतरी हूँ
गंगा में नहायी हूँ
ढेर सारी बातें जानती हूँ,
जैसे माँ का प्यार,
पिता का आशीर्वाद
उड़ान की ख़ुशी,
जंगलों की छाँव
घेरदार प्यार
मेघदूत की बात,
मौसम का बदलाव,
गोली की आवाज़
आतंक का स्वार्थ
शुद्ध हवा की पहचान
बर्फ़ीली ठंड की ठिठुरन
होली के रंग, दीपावली के अंश
महाभारत के पर्व, गीता का कर्म।

"बिना सोचे-समझे
बैठ गयी मेरे हाथ पर,
इतिहास को पता है
मैं बुद्ध भी हो सकता हूँ
और निर्मम शिकारी भी।"

भाग्य पढ़ सकती हूँ
उम्र बताती हूँ
माथे की रेखाओं से
छिपे नाम निकालती हूँ।
सच-झूठ जानती हूँ ,
जीवित को समझती हूँ
श्मशान पर भी रहती हूँ,
मैं आँख खोल सोती-जागती हूँ
प्यार से नहाती हूँ।

मैंने उसे सहलाया, तपाया
एक चित्र में सुलटाया
और आकाश को लौटा दिया।
कल यह चुलबुली चिड़िया
तुम्हारे आहते में आ
मुझे जोड़-घटा
यही सब कह डालेगी।

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