स्नेहिल जीवन

15-10-2023

स्नेहिल जीवन

महेश रौतेला (अंक: 239, अक्टूबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

तुम झील बन बैठी थी
मैं नाव लेकर आता था, 
ज्यों जीवन के प्रहर चले
मैं नाविक बन जाता था। 
 
मैं तट पर उतर गया था
तुम गहराई में डूबी थी, 
पवन वेग जब आया था
आशा मुझमें सोयी थी। 
 
तुम झील बन बैठी थी
मैं मत्स्य सा तैर रहा था, 
कौन किनारा, कब तैरा था
इतिहास यही सुना रहा था। 
 
दुख देना भी उसका काम
सुख देना भी उसका काम, 
तुम झील की व्यापकता हो
मैं नाविक की गाथा हूँ। 

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