ज़िन्दगी सोने न देगी

01-09-2024

ज़िन्दगी सोने न देगी

महेश रौतेला (अंक: 260, सितम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

ज़िन्दगी सोने न देगी
हर प्रहर गिनने न देगी, 
स्नेह में दिखने लगेगी
ज़िन्दगी सोने न देगी। 
 
फूल वह लेकर चलेगी
सुबह सबेरे पूजा करेगी, 
ज़िन्दगी सुवास देगी
करुणा को निथार देगी। 
 
ज़िन्दगी सोने न देगी
चुप कहीं होने न देगी, 
ज़िन्दगी हँसने न देगी
ज़िन्दगी रोने न देगी। 
 
वह चंचल-सरल हो
अनन्त को निखार देगी, 
किसी स्वर से एक होकर
किसी हाथ को हाथ देगी। 
 
आहटों को थामकर
प्रखर-प्रबल संवाद होगी, 
आँखों से आँख मिला
ज़िन्दगी सोने न देगी। 

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