कहने को तो दिन बहुत हैं

01-04-2024

कहने को तो दिन बहुत हैं

महेश रौतेला (अंक: 250, अप्रैल प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

कहने को तो दिन बहुत हैं
अपने दिन गिने-चुने हैं, 
रहने को घर बहुत हैं
अपने घर के मिलन सरल हैं। 
 
रहने को बहुत समय है
पर अपना रहना दिखा क्षणिक है, 
धरा यहाँ बहुत बड़ी है
अपना आवास एक माणिक है। 
 
देखने को स्वप्न बहुत हैं
अपनी दृष्टि में लघु क़दम हैं, 
आने को तो बसंत असंख्य हैं
अपने बसंत तो सौ से कम हैं। 
 
मन का जंगल बहुत सघन है
उसमें कटे वृक्ष बहुत हैं, 
आना-जाना लगा हुआ है
पर परिचय अपने प्रिय बहुत हैं। 

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