भारतवर्ष

15-08-2023

भारतवर्ष

महेश रौतेला (अंक: 235, अगस्त द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

वेद, पुराण रचा हुआ
रामायण, महाभारत में घुला हुआ, 
चक्र चलाने की विद्या 
ऐसा प्यारा, जग में न्यारा, भारतवर्ष। 
 
शिव के सृजित ज्योतिर्लिंग
धाम बड़े, लोग खड़े, 
जहाँ अनन्त का स्वरूप खींचा
ऐसा प्यारा, जग में न्यारा, भारतवर्ष। 
 
अमृत-विष का महा मंथन है
देव अनेकों, देवालय हैं, 
कण-कण में जहाँ देव दृश्य हैं 
ऐसा प्यारा, जग में न्यारा, भारतवर्ष। 
 
नदी अनेकों, प्रयाग बसे हैं
वृक्षों में देव रखे हैं, 
आत्म तत्त्व को अमर देखता
ऐसा प्यारा, जग में न्यारा, भारतवर्ष। 
 
युग रचता, युग हरता जो है
पंचांगों का गणित जानता, 
हिमगिरि जिसके निकट खड़ा है
ऐसा प्यारा, जग में न्यारा, भारतवर्ष। 
 
माँ सती के शक्तिपीठ हैं
भूमि दयामय देवतुल्य है, 
ऊपर शिखर हैं, नीचे सिन्धु है
ऐसा प्यारा, जग में न्यारा, भारतवर्ष। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कहानी
ललित निबन्ध
स्मृति लेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में