चलो चलें अब बहुत हो गया है

15-10-2024

चलो चलें अब बहुत हो गया है

महेश रौतेला (अंक: 263, अक्टूबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

चलो चलें अब बहुत हो गया है
भ्रष्टाचार ने बहुत दुख दे दिया है, 
राह के पत्थर उखड़ने लगे हैं
दूषित यह गंगा बहुत हो गयी है। 
 
दिन का सूर्य छिपने लगा है
जयद्रथ वध अब तक हुआ नहीं है, 
श्रीकृष्ण का चक्र दिखता नहीं है
भ्रष्टाचार पूजा करने लगा है। 
 
घराट भी अब उजड़ने लगे हैं
नदियों के मुहाने सिकुड़ने लगे हैं
ग़ुलामी का ख़ंजर चुभने लगा है
चलो चलें अब बहुत हो गया है। 
 
स्नेह का उफान बैठने लगा है
दृष्टि का मिलन मिटने लगा है, 
झूठ की सत्ता फूलने लगी है
सत्य चुप, जी चुराने लगा है। 
 
मित्र, ग़ुलामी के लाभ गिनाने लगा है
पाठ्यक्रम को महान बताने लगा है, 
सुबह नई है पर चाहत नहीं है
पूर्वजों का लिखा मिटने लगा है। 

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