सिक्कम यात्रा

05-07-2024

सिक्कम यात्रा

महेश रौतेला (अंक: 257, जुलाई द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)


सिक्कम यात्रा-१

हवाई जहाज़ में बैठने पर राइट बंधुओं की याद आती है। आधुनिक जीवन का आश्चर्य है यह। जेट इंजन वाले जहाज़ आज भी चार ही देश बना पाते हैं। ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और फ़्राँस। सिक्किम जाने के लिए बागडोगरा तक हवाई जहाज़ से और गंगटोक तक कार से जाते हैं। गंगटोक सिक्किम की राजधानी है। तिस्ता नदी का उद्गम सिक्किम में पौहुनरी ग्लेशियर से होता है जो लगभग २३ हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर है। एक ट्रक के पीछे लिखा था, “मैं उस देश का वासी हूँ जहाँ तिस्ता बहती है।” गंगा जैसा स्नेह झलकता है, इस वाक्य में। तिस्ता की बाढ़ के अवशेष दिख रहे हैं, सड़क से। चार अक्टूबर २०२३ को उग्र रूप में लोगों ने देखा था उसे। बहुत अधिक नुक़्सान हुआ था। बाढ़ में बहुत से स्थानों पर सड़क तक आ जाती है और घरों को अपना क्षेत्र बना लेती है। 

“यह हिमालय क्यों उग्र हो रहा
देखो मानव क्यों सो रहा है!”

गंगटोक में ठहरने के अच्छे-अच्छे होटल हैं। खाना अच्छा है। आलू का स्वाद बिल्कुल नैनीताल के आलू-सा है। बेहद स्वादिष्ट। सिक्किम २०१६ में भारत का सौ प्रतिशत जैविक (आर्गेनिक) राज्य बन गया था। प्राकृतिक दृश्य मनमोहक है। स्वच्छता उल्लेखनीय है। धुँध होने के कारण हिमालय के दर्शन नहीं हुए। 

पहाड़ी शहर में उतार-चढ़ाव दिखना स्वाभाविक हैं। ताशी व्यु पाइंट से कंचनजंगा साफ़ मौसम में दर्शनीय लगता है। बौद्ध विहार शान्ति के प्रतीक यहाँ देखे जा सकते हैं। गणेश जी के मन्दिर में जा आशीष लिये जा सकते हैं। छोटे-छोटे झरनों का अपना आकर्षण है। वहाँ की पारंपरिक वेशभूषा “खो” में फोटो खिंचाने की स्थान-स्थान पर व्यवस्था है। इसमें रोज़गार भी है। एक ड्रेस के सौ रुपये हैं। मैंने लड़की को सौ रुपये दिये और कहा ड्रेस भी इसी में है ना! वह मुस्कुरा दी। 

चाँगु झील तक बीआरओ ने सड़क बनायी है। रास्ते में झरने मिलते हैं। ड्राइवर से पूछा डैनी सिक्किम का ही है क्या? उसने कहा, “हाँ, ‘डैनी डेजोंगप्पा’। कल आप जहाँ जा रहे हैं वहीं का।” मैंने कहा, “मुझे उसकी ‘धुँध’ फ़िल्म याद है। उसमें नवीन निश्चल और ज़ीनत अमान भी थे।” झील तक जाने के लिए परमिट व्यवस्था है। ऑक्सीजन भी उपलब्ध कराने की व्यवस्था भी है, कार ड्राइवर ने बताया। सड़क बहुत अच्छी है। रास्ते में नाश्ते-चाय-भोजन की दुकानें हैं और गरम कपड़े ख़रीदे जा सकते हैं या किराये पर ले सकते हैं। झील १२४०० फ़ीट की ऊँचाई पर है। यहाँ रज्जु मार्ग (रोप वे) है जो भारत में सबसे ऊँचे स्थान पर बना रज्जु मार्ग है। झील का रंग बदलता रहता है। धुँध से अभी सब ढका है। लगभग पच्चीस याक वहाँ पर हैं। पर्यटक इनमें बैठकर फोटो खिचवाते हैं या सवारी भी करते हैं। कुछ बग़ल में खड़े होकर फोटो खींचा कर संतुष्ट हो जाते हैं। याक पर बैठ कर फोटो खिंचाने के लिए सौ रुपये देने होते हैं। मैंने बैठ कर फोटो खिंचाई और फिर बग़ल में खड़े होकर सबने। मैंने याक के मालिक को पचास रुपये और देने चाहे तो उसने नहीं लिये। कहा, “बग़ल में खड़े होकर खिंचाने का कुछ नहीं लेते हैं।” झील के किनारे कुछ दूर तक हम गये। पहाड़ों में पहाड़ याद आते हैं। 

“धुँध में दबी है झील
कोहरा दौड़ रहा है
किनारे ओझल, 
भारत का सबसे ऊँचाई पर
टिका रज्जुमार्ग 
पहाड़ों से बातें कर रहा है, 
प्यार लिख जाता हूँ
लौटकर, ध्यानमग्न
झील सा रंग, झरनों सा बहाव 
अपने में पाता हूँ।

सिक्किम यात्रा-२

उठ गये हैं पहाड़
गगनचुंबी हो गये हैं, 
आकाश से कुछ कह
उतर रहे हैं धीरे-धीरे। 
उतार लाये हैं गंगा
उतार लाये हैं तिस्ता, 
लोग अपनी अपनी समझ के अनुसार
कर रहे हैं उन्हें प्यार। 
बन रही हैं सड़कें
टूट रही हैं राहें, 
हमारे साथ-साथ
खड़े लग रहे हैं पहाड़। 
धुँध तो है
वह उड़ जायेगी, 
निर्मल गगन में फिर
रश्मियाँ दिखने लगेंगी। 

गंगटोक से हम अगले पड़ाव की ओर बढ़ रहे हैं। 

हमें रवांगला जाना है। ड्राइवर कहता है—आप चाय बग़ीचा और नामची का चार धाम देखते जाइये। दर्शनीय स्थल हैं। चाय बग़ीचा सुन्दर है, ढलान लिए हुए। वहाँ पारंपरिक वेशभूषा लेकर पर्यटक फोटो खींचा रहे हैं। पारंपारिक वेशभूषा को “खो” कहते हैं। चार धाम में बद्रीनाथ, पुरी, द्वारका, रामेश्वर के प्रारूप देखे जा सकते हैं। शिवजी की विशालकाय मूर्ति भी यहाँ स्थापित है। परिसर स्वच्छ और सुन्दर है। वहाँ से रवांगला के लिए चल पड़े। रवांगला में बौद्ध मठ है। भगवान बुद्ध शान्ति अवस्था में विराजमान हैं। वहाँ बैठे भिक्षु से मैंने एक प्रश्न पूछा। पूछा, “ज्ञान प्राप्त के बाद भगवान बुद्ध पत्नी यशोधरा से मिलते हैं। उनके बीच वार्तालाप होता है। लेकिन उसके बाद यशोधरा का कहीं उल्लेख मिलता है क्या? मैंने तो नहीं सुना है।” भिक्षु बोले, “उसके बाद उनका कोई उल्लेख नहीं है।”

वहाँ घास पर लेट कर मैंने फोटो खिंचाई। रवांगला बौद्ध मठ परिसर बड़ा है अतः वहाँ तीन-चार इलेक्ट्रिक रिक्शे चलते हैं। किराया ३०० रुपये प्रति रिक्शा है। 

खाना खाकर हम पेलिंग के लिए रवाना हुए। कुछ दूर जाकर सड़क बन्द मिली। सड़क पर पहाड़ का मलबा आ गया था। सड़क चौड़ीकरण के कारण यह टूट-फूट अधिक थी। पुलिस यातायात को गाँव/बस्ती के रास्ते जाने को कह रही थी। रास्ता कच्चा था और ढलान लिए हुए। लग रहा था कार कभी भी पलट सकती है या गिर सकती है। कार ड्राइवर गोपाल बहुत मद्धिम गति से हमें सुरक्षित पक्की सड़क में लाने में सफल हुआ। यह रास्ता लगभग ३-४ किलोमीटर का था। मुझे केरल की प्रायोजित साहसिक यात्रा याद आ रही थी लेकिन यहाँ प्रकृति ने ऐसी यात्रा करवा दी थी। ड्राइवर भी बोल रहा था ख़तरनाक रास्ता है। पक्की सड़क पर आने के बाद सड़क किनारे बैठी महिलाओं से पुलम और आड़ू ख़रीदे। उस समय बहुत स्वादिष्ट लग रहे थे, थोड़े मीठे, थोड़े खट्टे। 

पेलिंग पहुँचते-पहुँचते मूसलाधार बारिश शुरू हो गयी। पेलिंग में ग्लास स्काई वॉक कर सकते हैं। यह २०१८ में बनकर तैयार हुआ था। यहाँ से अच्छे मौसम में हिमालय (कंचनजंगा) देखा जा सकता है। जैसे बिनसर (अल्मोड़ा), कौसानी से नन्दादेवी, पंचचूली आदि देखते हैं। पंचचूली के विषय में कहते हैं पांडवों ने यहाँ पाँच चूल्हे लगाये थे, स्वार्गारोहण के अन्तिम पड़ाव पर। हिमालय २५०० किलोमीटर लम्बा विस्तार लिए है। पेलिंग लगभग सात हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर है। सुबह होटल में नाश्ता करते समय एक महिला मेरे पास आयी और बोली, “आपका नाम क्या है?” मैं थोड़ा असहज हुआ और बोला “क्यों?” । वह बोली मुझे लग रहा है आप मेरे फ़ेसबुक दोस्त हैं। मैंने अपना नाम बताया। और पूछा आप कहाँ से हैं, वह बोली, “भोपाल से।” 

पक्षी अभयारण्य भी है यहाँ। वृक्षों सहित प्राकृतिक सौन्दर्य भी। 

बारिश की रिमझिम जारी है। हम दार्जिलिंग की ओर बढ़ रहे हैं। रंगीत नदी मटमैली दिख रही है, तेज़ बहाव के साथ। ड्राइवर गोपाल हमें होटल में छोड़कर गंगटोक (गांतोक, स्थानीय नाम) वापस चला गया। होटल आगमन कक्ष में बढ़िया दार्जिलिंग चाय पिला कर स्वागत किया जाता है साथ में गले में पीला गमछा डाला जाता है। दार्जिलिंग में चाय बग़ीचा, मालरोड, चिड़ियाघर, बौद्ध मठ, शान्ति स्तूप देखने गये। चिड़ियाघर जाते समय चढ़ाई थी। एक बूढ़ी माँ अपने दोनों बेटों को कह रही थी, “मुझे यहीं बैठा दो। तुम देख आओ।” लेकिन दोनों बेटे उन्हें दोनों हाथ पकड़ कर जबर्दस्ती ऊपर को खींच कर चलने को कह रहे थे। चिड़ियाघर से लौटते समय कार तक आने के लिए ढलान पर चलना पड़ा था और फिर समतल सड़क के किनारे पैदल रास्ते पर। एक जगह पर थोड़ा ऊँचा-नीचा भाग था तो मैंने बिना पीछे देखे साथी के लिए हाथ पीछे कर दिया। जब मेरा हाथ पकड़ा नहीं गया तो मैंने पीछे मुड़कर देखा तो एक महिला थी, वह मुझे देख मुस्कुरा रही थी। वह समझ गयी थी कि मामला क्या है। 

यहाँ टायगर हिल से सूर्योदय देख सकते हैं। यातायात दार्जिलिंग में परेशान करने वाला है। दो किलोमीटर तय करने में एक घंटा तक लग जाता है कहीं कहीं पर। 

टॉय ट्रेन की यात्रा करने गये। रेल स्टेशन दयनीय लग रहा था। शौचालय में पानी नहीं था। उससे जुड़ा प्रतीक्षालय में कुर्सियाँ अच्छी थीं लेकिन गंध/बदबू के कारण वहाँ बैठना सम्भव नहीं था। हाथ सुखाने की मशीन थी लेकिन पानी के अभाव में वह व्यर्थ लग रही थी, उस समय। भाप इंजन और डीज़ल इंजन वाली ट्रेनें नैरो गेज पर चलती हैं। दो जगह रुकती हैं। वहाँ पर्यटक १० और २० मिनट के लिए दर्शनीय चीज़ों को देख सकते हैं, फोटो खींच सकते हैं। “घुम” से ट्रेन लौट जाती है। 

“अराधना” फ़िल्म की शूटिंग यहाँ हुई थी। राजेश खन्ना जीप में अपने दोस्त के साथ होते हैं, गाना चलता है। लेकिन शर्मिला टैगोर की डेट नहीं होने के कारण वह दार्जिलिंग नहीं आ पाती है तब ट्रेन का दृश्य जिसमें शर्मिला टैगोर ट्रेन में होती है, मंबई में स्टुडियो में बना कर फ़िल्माया जाता है (अनु कपूर के अनुसार)। गीत है 
“मेरे सपनों की रानी कब आयेगी तू . . .”

दार्जिलिंग से सुबह बागडोरा के लिए निकले। कुछ किलोमीटर तक सड़क और रेललाइन साथ-साथ चलते हैं। “आराधना” फ़िल्म मन में घूमती है। हरियाली मनमोहक है। फिर आते हैं चाय के लम्बे-चौड़े, हरे-भरे बग़ीचे। महिलाओं की क़तार जो चाय पत्तियाँ तोड़ने जा रही हैं, वे दिखती हैं। आगे बग़ीचे में छाता लिए पत्तियाँ तोड़ती दिखती हैं। कार ड्राइवर संजय बताता कि इन्हें मज़दूरी बहुत कम मिलती है। उनके कार्य-घंटे बताता है। इतने में एक विशालकाय हाथी सड़क पार कर रहा होता है। संजय कार धीमी करता है और कहता है हाथी देखना अच्छा होता है, सगुन होता है ना। हमने कहा, “हाँ।” संजय ने हमें हवाई अड्डे में छोड़ा। वह मुझे महाभारत के संजय की याद दिला रहा था। 

1 टिप्पणियाँ

  • आपका यात्रा वृतांत पढ़ कर सचमुच मुझे 2003 में अपनी सिक्किम यात्रा स्मृति पटल पर छा गई. अब तक तो काफी कुछ बदल गया होगा. नाथूला पास शायद रोड ब्लाक के कारण आप नहीं जा पाए होंगे. सिक्किम में जो विशेष है वह है वहाँ की वनस्पति और उस ka संरक्षण. दूसरा वहाँ पर गैर-पारंपरिक उर्जा का उत्पादन एवं उस का उपयोग

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
यात्रा वृत्तांत
यात्रा-संस्मरण
कहानी
ललित निबन्ध
स्मृति लेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में