मैं बिगुल बजाता रहता हूँ

15-11-2022

मैं बिगुल बजाता रहता हूँ

महेश रौतेला (अंक: 217, नवम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मैं बिगुल बजाता रहता हूँ
तुम सुनकर अनसुने रहते हो, 
मैं महिमा में उड़ लेता हूँ
तुम वीतराग से दिखते हो। 
 
क्या पाया, क्या खोया है
किंकर्तव्यविमूढ़ सा रहता हूँ, 
तुम दृष्टि स्वतंत्र रखते हो
मैं स्व पक्ष लिये व्यय होता हूँ। 
 
आदि अन्त में उलझा हूँ
शेष कुछ नहीं बचता है, 
तुम मुझे राह में छोड़े हो
मेरा प्रमाण यहीं रह जाता है। 
 
तुम यदा कदा ही मिलते हो
स्वर में सुर हो जाते हो, 
तुम ब्रह्माण्ड में रहते हो
मैं तथ्यों में ढूँढ़ा करता हूँ। 

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