वही स्वर्ग बन गया, जहाँ देवता बस गये

01-01-2024

वही स्वर्ग बन गया, जहाँ देवता बस गये

महेश रौतेला (अंक: 244, जनवरी प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

वही स्वर्ग बन गया
जहाँ देवता बस गये, 
वही राह स्वर्ग की
जहाँ देवता चल दिये। 
 
वृक्ष का स्वभाव है
पुष्प तो खिल गये, 
देवभूमि में यहाँ
देवता मिल गये। 
 
करोड़ों की कल्पना
धरा में बिखर गयी, 
मनुष्य की सुगन्ध तो
मनुष्य से निकल गयी। 
 
अभी प्यार शेष है
क्रोध में विकार है, 
मनुष्य का मनुष्य से
जुड़ा विशेष तार है। 
 
महाभारत निकल गया
क्या रहा शेष है! 
युद्ध तो निकल गया
बस घाव ही शेष है। 
 
शक्ति की संपन्नता
देव, देव ही रखें, 
मनुष्य के शीष तो
देवत्व पर ही झुकें। 
 
देवत्व तो छोड़ मत
पूरब का प्रकाश देख, 
नित्य लालिमा रहे
यह शाश्वत स्वभाव देख। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कहानी
ललित निबन्ध
स्मृति लेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में