ठंडी सड़क (नैनीताल)-04
महेश रौतेला
मैंने बूढ़े से आगे कहा, “जब आप प्यार में हों ‘खूब प्यार में हों’, यही जी करता है।
“जहाँ आप नैनीताल की राहों पर हों, ठंड का अहसास मिट जाता है। डीएसबी महाविद्यालय से हनुमानगढ़ी जा रहे हों। यहाँ काफल, हिसालू के वृक्ष नहीं पर राह का आभास भी नहीं होता है। किसी को खोजते-खाजते हनुमानगढ़ी पहुँच जाते हैं। वयस्क मन के कोई ओर-छोर नहीं होते हैं। इसमें राजुला-मालूशाही की प्रेम कहानी से सपने नहीं हैं। यथार्थ की धूप है। जटिल मन है। दोस्त का साथ है। खींचती है जिजीविषा स्नेह की तो अनन्ता से मेल-मिलाप होने लगता है। अनमोल वचन भी पास में नहीं हैं। न पत्र है, देने के लिये। केवल शीतल, उज्जवल, निर्मल मन है। दृष्टि स्पष्टता लिये। जन्म-जन्मांतर के आवेगों से बोझिल आत्मा।
“ऐसी उड़ान जिसे बैठने के लिए कोई हरा-भरा वृक्ष नहीं वहाँ। पर उड़ना है। उसके पास पहुँचना है। इतना ही पूछना है मुझे क्यों नहीं बुलाया? साथ-साथ चलते। मेरा मन तो झील में मछली की तरह तैर रहा था। लेकिन तुमने झील को ही सूखा दिया। अधिक देर उसके पास रुक भी नहीं सकता था। खलनायक दूर से घूर रहे थे। सोच रहे थे कंकड़ कहाँ से आ गया इस ख़ुशी के माहौल में! मैंने कहा उधार रहा शेष। धीरे से कहा बहुत अच्छी लग रही हो। हिन्दी फ़िल्मों की नायका राखी की तरह दिख रही हो आज। उसने सुना नहीं शायद। कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। मैं चल दिया अगली पहाड़ी की ओर जो वेधशाला के निकट थी, दोस्त साथ था। पीछे मुड़ कर नहीं देखा। जब लौटे तो ठंडी सड़क से आये। पाषाण देवी को प्रणाम किया। सुना है वहाँ से कुछ लोग झील में छलाँग लगाते हैं, दुख में टूटकर। लेखक काफ्का के शब्दों में, ‘अब मैं तुम्हारी आँखों में देख सकता हूँ (मांसाहार छोड़ने पर पशुओं से)’ नैनादेवी के मन्दिर के बाहर वे सब चाट खा रहे थे। मन को लपेटा और कैपिटल सिनेमा के पास शाम की चाय पी। प्यार का झोंका अब स्थिर हो चुका था।
“मन उदास था। शायद उसने लौटते समय मुझे ढूँढ़ा होगा, ऐसा मन में आया।
“फिर एक दिन हम अपनी प्रयोगशाला में थे। दरवाज़ा खुला था। हम उष्मा से संबंधित प्रयोग कर रहे थे। मेरी पीठ दरवाज़े की ओर थी। वह दरवाज़े पर खड़ी दिखी। मेरे दोस्त ने उसे देखा। वह मेरे कानों में बुदबुदाया। मैं मुड़ा। दोस्त बोला, ‘तुम्हें बुला रही है।’
“मैंने उसकी ओर मुड़कर पूछा, ‘मुझे!’
“वह बोली, ‘हाँ।’
“तब तक वह कोने में खड़ी हो गयी थी। वह बोली, ‘हमारी कक्षा के छात्र कहाँ होंगे?’
“मैं बोला, ‘मुझे पता नहीं।’ थोड़ी देर मौन रहा। फिर वह चली गयी, एक ख़ालीपन छोड़कर।
“वर्षों बाद लिखने को मन होता है:
“नमन कर मन चला था
राह कठिन होती गयी,
दिखा हुआ स्वप्न भी
टूट कर नीचे गिरा,
पर भूमि सारी हरित होकर
स्नेहसिक्त हो गयी।
दृष्टि बन अचल-अटल
कुछ देर वहाँ टिकी,
मिली हुई दृष्टि में
घनघोर घन घिर गये,
तड़ित चाल भी चमक कर
दो बूँद पर जा टिकी।
हनुमानगढ़ी में हनुमान जी थे
मैं खोजता शिक्षार्थी था,
मन में बसा रूप किसी का
भव्य से दिव्य हुआ था।”
बूढ़े की सुनते-सुनते आँखें लग गयीं।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- यात्रा वृत्तांत
- कविता
-
- अपनी धरती अच्छी हो
- अभी-अभी मैंने प्यार की बातों में मिठास घोली है
- अरे सुबह, तू उठ आयी है
- आपको मेरी रचना पढ़ने की आवश्यकता नहीं
- आपने कभी सपना देखा क्या?
- आरक्षण की व्यथा
- इस पार हमारा जीवन है
- इस पार हमारी नौका थी
- इसी प्यार के लिए
- इसी मनुष्य की विभा सूर्य सी चमकती
- उठो रात अब जागो तो
- उठो, उठो भारती, यही शुभ मुहूर्त है
- उम्र मैंने खोयी है
- उस दिन कोई तारीख़ नहीं थी
- एक अच्छा दिन निकला
- एक बच्चे की दौड़
- ओ धरा
- ओ मनुष्य
- कभी प्यार में तुम आओ तो
- कभी-कभी मन करता है
- कहते-कहते थका नहीं हूँ
- कहने को तो दिन बहुत हैं
- कितने सच्च मुट्ठी में
- किसे दोष दूँ
- कैसे कह दूँ प्यार नहीं था
- कौसानी (उत्तराखण्ड) की महिला
- खिसक जाते हैं गाँव-शहर
- गाँव तुम्हें लिख दूँ चिट्ठी
- गाँव हमारा
- चल रे जीवन विविध रूप में
- चलो चलें अब बहुत हो गया है
- चलो, गुम हो जाते हैं
- चलो, फिर से कुछ कहें
- चलो, लौट आवो
- चुलबुली चिड़िया
- जब आँखों से आ रहा था प्यार
- जब तनाव आता है
- जब भी लौटना, मिल के जाना
- जिये हुए प्यार में
- जो गीत तुम्हारे अन्दर है
- झूठ बहुत बिकता है
- तुम तो मेरे घर हो कान्हा
- तुम सत्य में सुख लेते हो
- तुम्हारी तुलना
- तूने तपस्या अपनी तरह की
- तेरी यादों का कोहरा
- तेरे शरमाने से, खुशी हुआ करती है
- थोड़ा सा प्यार हमने किया
- दुख तो बहुत पास खड़ा है
- दुनिया से जाते समय
- दूध सी मेरी बातें
- देव मुझमें रहते हैं
- दोस्त, शब्दों के अन्दर हो!
- नदी तब अधिक सुन्दर थी
- नम हो चुकी हैं आँखें
- निर्मल, शीतल शिखर हमारे
- पत्र
- पर क़दम-क़दम पर गिना गया हूँ
- पानी
- पिता
- प्यार
- प्यार कब शान्ति बन गया!
- प्यार ही प्रवाह है
- प्रभु
- फिर एक बार कहूँ, मुझे प्यार है
- बद्रीनाथ
- बस, अच्छा लगता है
- बहुत थका तो नहीं हूँ
- बहुत बड़ी बात हो गयी है, गाँव में भेड़िया घुस आया है
- बहुत शाम हो गयी
- बातें कहाँ पूरी होती हैं?
- भारतवर्ष
- मन करता है
- ममता
- मानव तेरा अस्तित्व रहेगा
- मेरा गाँव
- मेरा पता:
- मैं चमकता सूरज नहीं
- मैं तुमसे प्यार करता हूँ
- मैं पिता हूँ
- मैं बिगुल बजाता रहता हूँ
- मैं भूल गया हूँ पथ के कंकड़
- मैं वहीं ठहर गया हूँ
- मैं समय की धार रहूँ
- मैं समय से कह आया हूँ
- मैं ही था जो चुप था
- मैंने उन्हें देखा था
- मैंने पत्र लिखा था
- मैंने सबसे पहले
- मैंने सोचा
- यह पानी का आन्दोलन है
- ये आलोक तुम्हारा ही तो है
- ये पहाड़ मुझे घेर न लें
- लगता है
- वर्ष कहाँ चला गया है
- वही स्वर्ग बन गया, जहाँ देवता बस गये
- वे कठिन दिन
- शुभकामनाएँ
- सत्यार्थः
- सब सुहावना था
- सरस्वती वरदान दे
- सुख भी मेरा तिनका-तिनका
- सुबह सबेरे आये थे तुम
- स्नेहिल जीवन
- हम दौड़ते रहे
- हम पल-पल चुक रहे हैं
- हम भी यहीं से गुज़रे थे साथी
- हम सोचते हैं
- हमने गीता का उदय देखा है
- हर क्षण जिया था मैं
- हिमालय
- हे कृष्ण जब
- हे दर्द यहीं अब रुक जाओ
- हे भगवान तुम्हें रट लूँ तो
- ज़िन्दगी कुछ मेरी थी
- ज़िन्दगी सोने न देगी
- यात्रा-संस्मरण
- कहानी
-
- ठंडी सड़क (नैनीताल)-01
- ठंडी सड़क (नैनीताल)-02
- ठंडी सड़क (नैनीताल)-03
- ठंडी सड़क (नैनीताल)-04
- ठंडी सड़क (नैनीताल)-05
- ठंडी सड़क (नैनीताल)-06
- ठंडी सड़क (नैनीताल)-07
- ठंडी सड़क (नैनीताल)-08
- ठंडी सड़क (नैनीताल)-09
- ठंडी सड़क (नैनीताल)-10
- ठंडी सड़क (नैनीताल)-11
- नानी तुमने कभी प्यार किया था? - 1
- नानी तुमने कभी प्यार किया था? - 2
- परी और जादुई फूल
- पिता जी उम्र के उस पड़ाव पर
- बेंत
- लिफ़ाफ़ा
- ललित निबन्ध
- स्मृति लेख
- विडियो
-
- ऑडियो
-