हर क्षण जिया था मैं

15-07-2022

हर क्षण जिया था मैं

महेश रौतेला (अंक: 209, जुलाई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

हर साल को जिया था मैं
आह निकली, 
या ओह हुई
हर वसंत जिया था मैं। 
 
राजनीति का द्वन्द्व समझने
सदियों का अज्ञातवास तोड़ने, 
मीठे जल की शुचिता चखने
हर दिन जिया था मैं। 
 
प्यार को अन्तहीन बनाने
हवाओं सी मौज में रहने, 
घर-घर तक पहुँच बनाने
हर क्षण जिया था मैं। 
 
कुछ गीतों पर मन थिरकाने
कुछ लयों को सर्वत्र बहाने, 
आदि शक्ति के नियम देखने
हर पल जिया था मैं। 
 
सुख-दुख का परिवार टटोलने
रिक्त भाग को प्रतिपल भरने, 
हर दिशा में शान्ति भेजने
हर जीवन जिया था मैं। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कहानी
ललित निबन्ध
स्मृति लेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में