गाँव हमारा

15-03-2023

गाँव हमारा

महेश रौतेला (अंक: 225, मार्च द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

1. 
गाँव तुम कह के जाना
एकान्त में हँस के जाना, 
भोग लिया मैंने सुख जो
उसे आशीष पुनः दे जाना। 
 
टूटा है तेरा मन जो
उसे उठाकर शिखर बनाना, 
पथ में काँटे जो आये हैं
उन्हें फूलों के संग समझाना। 
 
निर्मल, शीतल जल की धारा
कुछ कहती, कुछ बहती है, 
उसके तट पर खेल लिया व
कृष्ण की लीला देख लिया व। 
 
गाँव के खेल बहुत हैं
विद्यालय के लेख बहुत हैं, 
सन्नाटे में जो विहग बांसता
उसके स्वर में लय जीवित हैं। 
 
गाँव अकेला मधुर बिपुल है
उसके ऊपर स्वच्छ गगन है, 
ऊँचे मस्तक, बीहड़ वन में
गाँव के अन्दर गाँव मगन है। 
 
यहाँ पर्यावरण का स्वच्छ पता है
बुरांश-काफल का गीत जीत है, 
गाँव तुम कह के जाना
हर दिन हँसना बड़ी जीत है। 

 
2.
सर्पिल सा चला पथ मेरा
गाँव हमारा बड़ा अकेला, 
दर्द उसका सूख चुका है
गाँव मेरा बड़ा अकेला। 
 
दिखाता है नभ का कोना
निर्मल जल की शीतल गाथा, 
खिला बुरांश पर रक्तिम यौवन
मिला पहाड़ पर आधा जीवन। 
 
सुख भी उसने बाँट दिया है
आँसू में कुछ खार नहीं है, 
मन में इतनी मेहनत रहती
लय में कोई खोट नहीं है। 
 
बंधु, गाँव मेरा बड़ा अकेला
गुण-दोषों ने बहुत खदेड़ा, 
जितना हमने उसको बोला
उससे अधिक उसने जोड़ा। 

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