बातें कहाँ पूरी होती हैं?

01-09-2020

बातें कहाँ पूरी होती हैं?

महेश रौतेला (अंक: 163, सितम्बर प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

बातें कहाँ पूरी होती हैं
सूर्योदय से सूर्यास्त तक,
शाम से सुबह तक
बातें हैं तो साथ हैं,
बातें कहाँ पूरी होती हैं?


कभी प्यार पर लटकती हैं
कभी आकाश में भटकती हैं,
कभी बचपन चुराती हैं
कभी यौवन दिखाती हैं,
बातें कहाँ पूरी होती हैं?


आग भी तपाती हैं
सिर भी खपाती हैं,
नरम भी होती है
गरम भी दिखती हैं,
बातें कहाँ पूरी होती हैं?


घर से निकलती हैं
बाहर कुछ चमकती हैं,
राज़ भी रखती हैं
महाभारत भी करती हैं,
बातें कहाँ पूरी होती हैं?


दुआ बहुत दिलाती हैं
दुनिया बहुत घुमाती हैं,
दोस्त भी बनाती हैं
रिश्ते भी निभाती हैं,
बातें कहाँ पूरी होती हैं?


बातें प्रचुर हँसाती हैं
बातें बहुत रुलाती हैं,
अन्त तक ले जाती हैं
निडर हमें बनाती हैं,
बातें कहाँ पूरी होती हैं?

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