मैंने सोचा अमृत बरसेगा

01-01-2025

मैंने सोचा अमृत बरसेगा

महेश रौतेला (अंक: 268, जनवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मैंने सोचा अमृत बरसेगा
ग़रीबी हटेगी, 
संशय मिटेगा
टूटा जुड़ेगा, 
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। 
 
मैंने सोचा बीमारी कम होगी
बाघ बकरी नहीं मारेगा, 
हरियाली बढ़ेगी
जलस्तर बढ़ेगा, 
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। 
 
मैंने सोचा हवा शुद्ध होगी
सुगंध बढ़ेगी, 
घुटन कम होगी
विषवमन कम रहेगा
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। 
 
इन सबके बीच मैंने सोचा
स्नेह रहेगा, 
हाँ और नहीं के बीच समय कटेगा
मधुमास आयेगा, 
मरने के बाद स्वर्ग दिखेगा। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
स्मृति लेख
यात्रा वृत्तांत
यात्रा-संस्मरण
कहानी
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में