इस पार हमारा जीवन है

01-07-2023

इस पार हमारा जीवन है

महेश रौतेला (अंक: 232, जुलाई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

इस पार हमारा जीवन है
उस पार पता नहीं क्या होगा? 
इस पार गंगा पर बैठे हैं
उस पार कहाँ मिलना होगा? 
 
इस पार हमारे उत्तुंग शिखर हैं
उस पार चलना कैसा होगा? 
इस पार हमारा प्यार बहा है
उस पार कैसा मिलन होगा? 
 
इस पार हिमालय सा मौन घिरा 
उस पार क्या कहना होगा? 
यहाँ जन्म पर ख़ुशियाँ हैं, 
वहाँ आगमन कैसा होगा? 
 
इस पार हमारे घर सुन्दर
उस पार कौन बेघर होगा? 
यहाँ हमारी महिमा ऊँची
वहाँ शिवालय जाना होगा। 
 
यहाँ धरा हरी-भरी
वहाँ रहन-सहन कैसा होगा? 
यहाँ नील गगन तो अनुपम है
वहाँ गगन कैसा होगा? 
 
यहाँ टूट-फूट से रिश्ता भारी
वहाँ अटूट से जुड़ना होगा, 
यहाँ बच्चों की उछल-कूद है
वहाँ बचपन कैसा होगा? 
 
यहाँ जीवन की मित्रमंडली
वहाँ किस-किस से परिचय होगा? 
आना-जाना कठिन नहीं
रहने को कैसा घर होगा? 
 
इस पार हमारा जीवन है
उस पार पता नहीं क्या होगा? 
इस पार मृदुल बन बैठे हैं
उस पार किसका आलिंगन होगा? 
 
यहाँ बाग़-बग़ीचे इतने सुन्दर
वहाँ कैसा सौन्दर्य मिलेगा? 
इस पार धरा की उर्वरता
उस पार कैसा फल होगा? 
 
यहाँ टूट-फूट का दर्शन है
वहाँ अविभाज्य से मिलना होगा, 
यहाँ जन्म का उत्सव बड़ा
वहाँ हाथ में क्या होगा? 
 
यदि यहाँ पुण्य का जीवन है
वहाँ इसका स्वागत होगा, 
यहाँ अग्नि जो बुझी नहीं
वहाँ प्रज्वलित हो स्वागत होगा। 
 
इस पार हमारी राहें सुन्दर
उस पार कैसा पथ होगा? 
इस पार बना लय सुन्दर
उस पार कैसा लय होगा? 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कहानी
ललित निबन्ध
स्मृति लेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में