तुम्हारी तुलना

21-02-2019

तुम्हारी तुलना

महेश रौतेला

तुम्हारी तुलना
उस सुबह से करूँ
जो अभी-अभी जागी है
और आँगन पर ठहरी है,
या उस शाम से करूँ
जो अभी-अभी सोयी है
और सूरज का सपना देख रही है,
उस पहाड़ से करूँ
जो अभी भी नौजवान है,
या उस नदी से करूँ
जो सोयी नहीं है
मछलियों की चहल-पहल से भरी है,
उस परंपरा से करूँ
जो मिटी नहीं है
घरों में बैठी है,
मैं तुम्हारी तुलना
दिन-रात से करूँ
जो हमसे जुड़े हुए
उस परिवर्तन के लिए
आन्दोलन कर रहे हैं
जो हुआ नहीं है।

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