प्यार ही प्रवाह है

15-01-2022

प्यार ही प्रवाह है

महेश रौतेला (अंक: 197, जनवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

प्यार ही प्रवाह है
समस्त युगों का सार है, 
गति से सद्‌गति तक
छायादार राह है। 
 
पत्र में पढ़ो या
पुस्तकों में लिखा करो, 
विकट अरण्य में ढूँढ़ लो
या कंटकों से छाप दो। 
 
नींद में ढाल लो
या जाग कर उघाड़ लो, 
पवित्र तीर्थ में देख लो
या मन्दिरों में पूज लो। 
 
विगत का विश्वास है
आगत का उपहार है, 
मन से छलका हुआ
प्रवाह ही प्रवाह है। 
 
कण-कण में पर्याप्त है
दृष्टि में व्याप्त है, 
हर हस्त के स्पर्श में
उसी का संचार है। 
 
जिस पग पर अटक गया
वहाँ भी संसार है, 
जहाँ-जहाँ छलक गया
अमृत का वास है। 

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