तुम सत्य में सुख लेते हो

01-10-2022

तुम सत्य में सुख लेते हो

महेश रौतेला (अंक: 214, अक्टूबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

तुम हिमगिरि से खड़े हुए हो
मैं तुम तक चल कर आया हूँ, 
पगडण्डियों से चलते-चलते
शिखर चूमने आया हूँ। 
 
चलता हूँ, थका नहीं हूँ
ब्रह्मलीन हुआ नहीं हूँ, 
संसारी सुख-दुख में
आया-जाया करता हूँ। 
 
प्यार जो छूट गया है
मैं उस पर बैठा करता हूँ, 
तुम ब्रह्म कमल से बने हुए हो
जिसे मैं छूकर लौटा करता हूँ। 
 
मैं आशा दीप जलाता हूँ
तुम सत्य में सुख लेते हो, 
मैं घर पर वाचाल रहता हूँ
तुम जग में रहकर चुप रहते हो। 
 
दिख गये तुम्हारे नयन कहीं तो
मैं उनमें देखा करता हूँ, 
छूट गये पग के पथ तो
मैं मन से ढूँढ़ा करता हूँ। 

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