मैं पिता हूँ

15-03-2022

मैं पिता हूँ

महेश रौतेला (अंक: 201, मार्च द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मैं पिता हूँ
और कठोर ज़मीन पर खड़ा हूँ, 
शब्दों का मौन
मुझे विचलित करता है। 
 
वृक्षों का रक्तहीन कटाव
मुझे जड़ से उखाड़ता है, 
नदियों की विषाक्तता
मुझे अन्दर ही अन्दर सुखाती है। 
 
मेरे भी सपने हैं
जो आसमान में घूमते हैं, 
मेरी भी इच्छायें हैं
जो ज़मीन पर बहती हैं। 
 
मैं अनन्त नहीं हूँ
पर अनन्तता से रिश्ता रखता हूँ, 
चारों ओर उगी झाड़ियों के बीच
मैं एक सशक्त पिता हूँ। 
 
मेरी ईप्सा में
छेद अनगिनत हैं, 
जहाँ गूँजने के लिए
बातें असंख्य हैं। 
 
मेरे पास डरावनी बातें हैं
जो सर्पाकार हो, 
छुपी रहती हैं मन में
पिता होने के लिए। 

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