ओ धरा

महेश रौतेला (अंक: 227, अप्रैल द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

ओ धरा तू ही बता
मैं कब, कहाँ, किधर था! 
दुख मेरे अनेक हैं
सुख मेरे संदेश हैं, 
माटी मुझे जैसी मिली
उसी में प्रमोद हैं, 
ओ धरा तू ही बता
कब, कैसा मौसम सजा! 
मैं लड़ा, मैं भिड़ा 
संघर्ष में घायल हुआ, 
रण सदा यहाँ चला
समय सदा चंचल रहा, 
जय-पराजय हुए साक्षी
ओ धरा, तू प्रिय पिपासा। 
वैभव तुझमें आया-गया
जल जहाँ-तहाँ छलछलाया, 
हँसी का विकास लिये तू 
आँसू में वैराग लिये तू। 
इक भाग में घाम है
इक भाग में छाँव है, 
मनुष्य से अपना सिंहासन
सँभलता कब-कहाँ है! 
ओ धरा तू भ्रमण में 
नाच का प्रमाण है, 
तू ही बता शुभ्रता में
मैं कब, कहाँ, किधर था? 

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