चलो, गुम हो जाते हैं

01-04-2023

चलो, गुम हो जाते हैं

महेश रौतेला (अंक: 226, अप्रैल प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

चलो, गुम हो जाते हैं
न तुम मुझे देखो, 
न मैं तुम्हें देखूँ
बस, एक अहसास बना रहे। 
 
कुछ शुभ्रता तुममें रहे
कुछ शुभ्रता मुझमें रहे, 
कुछ स्पष्ट तुम रहो
कुछ स्पष्ट मैं रहूँ। 
 
चलो, अज्ञातवास में चलते हैं 
वनों में छुप जाते हैं, 
कुछ छाँव तुम लो
कुछ छाँव मैं लूँ। 
 
चलो, लुकाछिपी खेलते हैं
इस खेलनुमा ज़िन्दगी में, 
तुम मुझे ढूँढ़ो
मैं तुम्हें ढूँढ़ूँ 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कहानी
ललित निबन्ध
स्मृति लेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में