कल फिर उदय होना

15-10-2025

कल फिर उदय होना

महेश रौतेला (अंक: 286, अक्टूबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

कल फिर उदय होना
मनुष्य की तरह, 
मैं देख सकूँ तुम्हें
वसन्त की तरह। 
 
मन के छोर पकड़ते-पकड़ते
थका नहीं हूँ, 
कुछ और दूरियाँ हैं शेष
अभी रुका नहीं हूँ। 
 
फूल सुन्दर लगते हैं
देखना छोड़ा नहीं, 
इस उदय-अस्त में
चलना रुका नहीं। 
 
कल फिर दिखना
नक्षत्र की तरह, 
मैं राह पर रहूँगा
राहगीर की तरह। 

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