उस दिन कोई तारीख़ नहीं थी

15-12-2023

उस दिन कोई तारीख़ नहीं थी

महेश रौतेला (अंक: 243, दिसंबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

उस दिन कोई तारीख़ नहीं थी
उस दिन कोई बरस नहीं था, 
फूलों का सौन्दर्य ख़ूब था
जंगल सबके साथ खड़ा था। 
 
ऋतुओं का नाम नहीं था
मन की पूरी पहचान नहीं थी, 
धरती को जब पढ़ा गया था
मानव का इतिहास नहीं था। 
 
बँट जाने को बनी थी धरती
ऐसा सबका अंदाज़ा था, 
घर की चिन्ता बहुत बड़ी थी
मेहनत का बाज़ार गरम था। 
 
कोई सत्य पर टिका हुआ था
कोई असत्य का संस्थापक था, 
चलकर आया संसार जहाँ से
उस राह पर नाम नहीं था। 
 
उस दिन कोई तारीख़ नहीं थी
उस दिन कोई बरस नहीं था, 
समतामूलक स्वच्छ जल पर
कोई किसी का अधिकार नहीं था। 

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