ओ मनुष्य

01-04-2023

ओ मनुष्य

महेश रौतेला (अंक: 226, अप्रैल प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

ओ मनुष्य तू है कहाँ पर
तू निकल कर आ यहाँ पर, 
कर ऐसा कर्म उन्नत
रह जाएँ तेरे चिह्न धरा पर। 
 
लिख ऐसा गीत उन्नत
स्वर फूटें इस मही पर, 
क़दम अपने महान धर तू
अटल सत्य पर टिका रह तू। 
 
अन्त तेरा अनन्त हो
हर दशा में वीरत्व ले तू, 
फूल सा उच्छवास हो
बीज बनकर अनन्त रह तू। 
 
दिख रहा शिखर जहाँ पर
तू वहाँ से निकल सरासर, 
उठ रहा जो शोर यहाँ पर
तू उसी का लय हुआ कर। 

1 टिप्पणियाँ

  • साहित्य मानव विकास की एक सशक्त क्रमबद्ध विवेचना है। अतएवं आवश्यक होता है साहित्यकार को सत्यवादी निश्पक्ष होना , तभी एक सही इतिहास का आविर्भाव होता है।

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