सुख भी मेरा तिनका-तिनका

15-02-2021

सुख भी मेरा तिनका-तिनका

महेश रौतेला (अंक: 175, फरवरी द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

सुख भी मेरा तिनका-तिनका
दुख भी मेरा तिनका-तिनका,
कुछ इधर उड़ा, कुछ उधर उड़ा
कुछ मन का, मन का हो गया।
 
आते-जाते जीवन रूठा
फिर हँस कर अद्भुत बन बैठा,
मन का पंछी डाल-डाल पर
क्षणभर गाया, क्षणभर रूठा।
 
पग-पग पर फूल खिले थे
पग-पग पर पुष्प मरे थे,
जिस पथ पर प्यार हुआ था
वह पथ भी विरान मिला था।
 
किसकी गति क्या होगी
यह अनुमान कहाँ कभी था!
पल भर जो आँख खुली तो
वही मोक्ष सा क्षण अपना था।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

यात्रा वृत्तांत
कविता
यात्रा-संस्मरण
कहानी
ललित निबन्ध
स्मृति लेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में