सुख भी मेरा तिनका-तिनका
महेश रौतेलासुख भी मेरा तिनका-तिनका
दुख भी मेरा तिनका-तिनका,
कुछ इधर उड़ा, कुछ उधर उड़ा
कुछ मन का, मन का हो गया।
आते-जाते जीवन रूठा
फिर हँस कर अद्भुत बन बैठा,
मन का पंछी डाल-डाल पर
क्षणभर गाया, क्षणभर रूठा।
पग-पग पर फूल खिले थे
पग-पग पर पुष्प मरे थे,
जिस पथ पर प्यार हुआ था
वह पथ भी विरान मिला था।
किसकी गति क्या होगी
यह अनुमान कहाँ कभी था!
पल भर जो आँख खुली तो
वही मोक्ष सा क्षण अपना था।
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