ये आलोक तुम्हारा ही तो है

01-12-2022

ये आलोक तुम्हारा ही तो है

महेश रौतेला (अंक: 218, दिसंबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

ये आलोक तुम्हारा ही तो है
जो जगमग, जगमग करता है, 
शुद्ध पवन से झोंकों से
हमें जगाया करता है। 
 
तुम्हें सोचने में हमने
जीवन तपमय देखा है, 
हम व्यर्थ नहीं, विश्वास यहाँ हैं
यही तो तुमने परखा है। 
 
दिन के कोमल हिस्से हैं
पत्थर सा पथ आगे है, 
पीड़ा के पत्तों पर बैठा
आलोक तुम्हारा आगे है। 
 
देर नहीं यह निरन्तरता है
जो हमको आगे करती है, 
जो प्रलय नहीं लय होता है
वही तो आलोक तुम्हारा है। 

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