इसी मनुष्य की विभा सूर्य सी चमकती

01-02-2020

इसी मनुष्य की विभा सूर्य सी चमकती

महेश रौतेला (अंक: 149, फरवरी प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

इसी मनुष्य की विभा सूर्य सी चमकती,
इसी मनुष्य की तृष्णा, समुद्र सी उछलती,
यही मनुष्य देव है, जब बुद्ध तक आ गया,
इसी मनुष्य की प्रभा, धरा का अभिमान है।


पुरुषार्थ के लिए बनी पवित्र यह धरा है,
आनन्द का, शोक का अमृत-विष यहाँ है,
प्यार के बने हुए, ऊँचे जन्म-स्थल हैं,
ज्ञान के प्रकाश की ध्वनि धरा में व्याप्त है।


मनुष्य ने जो कहा वही उसका गीत है,
मनुष्य की दया में लौटता विधान है,
बँटता-बिखरता मनुष्य का संसार है,
लोक से परलोक तक मनुष्य की आवाज़ है,
इसी मनुष्य की विभा सूर्य सी चमकती।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कहानी
ललित निबन्ध
स्मृति लेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में