प्यार तो प्रखर था

01-02-2025

प्यार तो प्रखर था

महेश रौतेला (अंक: 270, फरवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

प्यार तो प्रखर था
सुबह सा तरुण था, 
अरुण-वरुण का मेल था
मन का प्रथम प्रहर था। 
 
वहीं पर पुण्य खुला था
आसपास प्राण थे, 
वृक्ष भी खड़े थे
नमन वहाँ विशाल था। 
 
जो हाथ ने छुआ था
वह प्यार बहुत बड़ा था, 
ऊँचाई पर पग खड़े
दृष्टि में निकास था। 
 
जिधर से निकल गये
सुवास ही सुवास थी, 
जिधर भी रुक गये
उधर पुष्प खिल गये। 
 
शब्द सब प्रिय थे
मौन दीर्घ प्रेम था, 
वह एकत्व की सभा थी
जहाँ ईश्वर भी अवाक्‌ था। 
 
देखना अति प्रिय था
मुड़ना शिखर था, 
कल्पना गुणी थी
भाव में मुक्ति थी। 
 
दुख तब छिपा था
सुख में प्रवाह था, 
गिने-चुने क्षणों में
शिखर ही शिखर थे। 
 
जहाँ प्रेम खड़ा था
वहाँ छाँव बड़ी थी, 
प्यार तो प्रखर था
सुबह सा तरुण था। 

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