वे कठिन दिन

01-08-2022

वे कठिन दिन

महेश रौतेला (अंक: 210, अगस्त प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

वे कठिन दिन
पेड़ कट रहे थे
लोग चुपचाप खड़े थे, 
दूसरे साल सूखा आया
तीसरे साल बाढ़ आयी, 
कुल्हाड़ी चल रही थी। 
 
फिर चिपको आन्दोलन आया
पेड़ जूझते रहे
संघर्ष चलता गया, 
आन्दोलन क्षीण हुआ
पहाड़ दरकने लगे। 
 
वे कठिन दिन
माँ खेतों में थी
खेतों से आ, खाना बनाती थी
जंगल जा, घास लाती थी, 
थकी होती थी
रात को कहानी सुनाती थी। 
 
वे कठिन दिन
कोहरे से पहाड़ ढका होता था, 
छत से पानी टपकता था
मैं सबको ख़बर करता था। 
 
वे कठिन दिन
आशाओं के क्षितिज थे
निराशाओं के खंदक थे, 
कुछ तुम बुदबुदाते थे
कुछ मैं बुदबुदाता था, 
प्यार की आपाधापी में
संसार सारा निराकार था। 

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