मैं तुमसे प्यार करता हूँ

07-02-2017

मैं तुमसे प्यार करता हूँ

महेश रौतेला

जब मैंने किसी से कहा
"मैं तुमसे प्यार करता हूँ"
तो एक विस्फोट हुआ था
बहुत गहराई में
प्राणों के आसपास।
यह आतंकी विस्फोट नहीं था
न परमाणु विस्फोट था
कोई मरा नहीं
घायल भी कोई नहीं हुआ था
ख़ून नहीं बहा था मानवता का
धुआँ कहीं नहीं दिखा,
धरती को चोट नहीं आयी,
पेड़-पौधे मुरझाये नहीं।
पर प्राणों की दीवारें हिली, थरथरायी,
टूटकर कुछ नष्ट नहीं हुआ
आग भी नहीं लगी,
आँखों में आश्चर्य था
एक अनहोनी सी हुई
पैर स्थिर, भाव सन्न थे
प्राण शून्य में अटके से,
लालिमा उषाकाल सी आयी थी
दरारें कहीं नहीं आयीं,
पावन एक कुंड बना
गौरीकुंड की तरह।
आख़िर यह मानवता का विस्फोट था,
जिसके चारों ओर सृष्टि थी,
जीजिविषा का एक अद्भुत विस्तार।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कहानी
ललित निबन्ध
स्मृति लेख
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में