पीड़ा

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 178, अप्रैल प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

 

जैसे छीन रहे हो मुझसे उन्हें

वैसे ख़ुदा तुमसे

कोई अपना छीने तो

क्या तुम्हें दर्द नहीं होगा?

 

जैसे जी रहा हूँ मैं

तड़प तड़प उसके बिना

अगर तुम्हें भी जीना पड़े

किसी अपने के बिना तो?

 

जैसे मुस्कुरा रहा हूँ

छुपाए सीने में दर्द अपने

अगर तुमको भी जीना पड़े

किसी अपने के लिए दर्द में तो?

 

जैसे मर रहा हूँ हर पल

मैं उनके बिना

अगर तुम्हें नहीं जीना पड़े

हर पल किसी अपने के बिना तो?

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