बदलाव

राजीव डोगरा ’विमल’ (अंक: 171, दिसंबर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

मेरे बदले हुए
किरदार से डरते हैं।
तूफ़ानों का एहसास
उनको आज भी है,
इसीलिए आने वाले
सैलाबों से डरते हैं।
उनको पता है
बिगड़े हुए वक़्त की तरह
जब भी बिगड़ा है
किरदार मेरा 
तो हर जुड़ा हुआ
ख़्वाब भी टूट कर बिखरा है
किसी टूटी तार की तरह।
वो बहते हुए
मेरे अश्कों को देख कर
आज भी घबराते हैं,
उन्हें मालूम है
जब-जब ये अश्क बहे हैं
तो सब कुछ बहा कर ले जाते हैं
किसी  तूफ़ान की तरह।

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