प्रार्थना फूल
सुशील यादवदेता हमको है नहीं, कोई दस्तक रोज़।
अनुभूति सजग खाँसते, कर अपनों की खोज॥
अरसा बीते क्या मिला, करके टीका खोज।
सर से कब उतरे भला, कसक करोना रोज़॥
काया अपनी ढल गई, पड़ती उम्र दरार।
कुल इतने दिन का हुआ, ईश्वर महज़ क़रार॥
देने को बैठा यहाँ, मालिक बनके नेक।
इस सरकार नहीं कहूँ, ऊपर भी तो एक॥
दायाँ भी भूले हमीं, बायाँ जाते भूल।
बिना मास्क के चल रहे, लिए प्रार्थना फूल॥
हम पर हो बाक़ी कहीं, करें उधार वसूल।
बिना दिए जाना नहीं, सना चेहरा धूल॥
धरना बैठ किसान भी, ख़ुद से हैं नाराज़।
लिखा गया तक़दीर में, ये दिन देखें आज॥
रीढ़ देश की तोड़ते, कर अधमरा किसान।
अभी सहज हर दाम है, छुए कल आसमान॥
हलफ़ सभी है भूलती, क्या है किरदार।
अब बिचौलिया भेष में, सड़क खड़ी सरकार॥
कब तक जारी तुम रखो, हवा विपक्ष ख़िलाफ़।
ठिठुरन में ये देश है, बहुमत ओढ़ लिहाफ़॥
मक़सद अपना है नहीं, तोड़ें जन क़ानून।
तुमको परसा देश है, हम खाएँ दो जून॥
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