कोई मुझको शक ओ शुबहा नहीं रहा

15-12-2024

कोई मुझको शक ओ शुबहा नहीं रहा

सुशील यादव (अंक: 267, दिसंबर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब इसरम मक़बूज़ महज़ूफ़
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
 
22    22    22    22    22
 
कोई मुझको शक ओ शुबहा नहीं रहा
पहले सा तुझपे भरोसा नहीं रहा
 
आसमा परिंदों की गिनती भूलो
उम्मीद के माफिक नीला नहीं रहा
 
क़ीमत जब से लगी शराब की बढ़ने
मयकश डूबना नशीला नहीं रहा
 
आहिस्ता आहिस्ता दूर सब हुए
फिर नज़दीक कोई क़बीला नहीं रहा
 
यादों में बचपन की है फिसल पट्टी
बालू-बजरी वाला टीला नहीं रहा

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