पास इतनी, अभी मैं फ़ुर्सत रखता हूँ

01-02-2025

पास इतनी, अभी मैं फ़ुर्सत रखता हूँ

सुशील यादव (अंक: 270, फरवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

बहर : हज़ज मुसम्मन अख़रब अख़्र्म अबतर
अरकान: मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊलुन फ़े
तक़्तीअ: 221    1222    222    2
 
पास इतनी, अभी मैं फ़ुर्सत रखता हूँ
तेरी ख़ता, खुद पर तोहमत रखता हूँ
 
चाहूँ कभी, मिटना गर तेरे बदले
ज़ुल्मों को सहूँ, यह जनमत रखता हूँ
 
सुन सुन के, सितम वाली बातें लाखों
हर बे­-ज़ुबाँ पे, मैं रहमत रखता हूँ

अब आँख चुरा लेगा ग़लती पर वो भी
उन जैसों से आए दिन रग़बत रखता हूँ
 
मै फूल या काँटे चुन लूँ सहरा जब
मक़्सद कहाँ करना ख़िदमत रखता हूँ
 
इस जात के लोगों को तुम पहचानो
नक़्शे पा वही ख़ुद चाहत रखता हूँ 
 
मुझको हरा पाना समझो मत आसान
मैं आज भी भारी बहमत रखता हूँ 
 
है ख़ौफ़ मुझे तारी आतंकी का
आए दिनों इनकी दहशत रखता हूँ
 

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