बादल मेरी छत  को भिगोने नहीं आते

15-04-2022

बादल मेरी छत  को भिगोने नहीं आते

सुशील यादव (अंक: 203, अप्रैल द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

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बादल मेरी छत  को भिगोने नहीं आते
आसान से सदमों में रोने नहीं आते
 
कुछ दिन रहा रूठा यूँ जज़्बात का मासूम
अब तो इधर बिकने खिलौने नहीं आते
 
इतने हुनर वाले जुलाहे कहाँ बाक़ी
तरतीब से बुनने बिछौने नहीं आते 
 
बंजर मिली हमको ज़मीनें विरासत की
ये सोच क्या काटें तभी बोने नहीं आते 
 
कुछ दिन से आदत में हुई  है ये तब्दीली
जी घर नहीं लगता जो सोने नहीं आते

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