बस ख़्याले बुनता रहूँ

01-10-2013

बस ख़्याले बुनता रहूँ

सुशील यादव

(घनाक्षरी)


अँधेरे में दुआ करूँ, ऐ ख़ुदा परछाई दे
बेख़्याली में निकले, जो नाम सुनाई दे

करवट न बदलूँ, कोई ख़्वाब न देखूँ
नीद से उठते तेरी, याद जुम्हाई दे

क़समों का क़सीदा हो, कहीं वादों का हो ताना
ख़्याले बुनता रहूँ, बस यूँ तन्हाई दे

उजड़े गुलशन में, सब्ज़-शजर देखूँ
हो तब्दील क़िस्मत, जन्नत ख़ुदाई दे

रिश्तों की अदालत, बेजान हलफ़नामे
या मुझे ज़िंदा रख, या मेरी रिहाई दे

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