वादों की रस्सी में तनाव आ गया है

15-04-2024

वादों की रस्सी में तनाव आ गया है

सुशील यादव (अंक: 251, अप्रैल द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

2122        2122       2122

 

वादों की रस्सी में तनाव आ गया है
चर्चे मंदिर के हैं चुनाव आ गया है
 
आजकल होने लगी  है बस ग़लतियाँ
चेहरा ज़्यादा कुछ खिंचाव आ गया है
 
जूझती रोगी उफ  नदी पाँच सालों
अब की बारिश कैसा बहाव आ गया है
 
वे उठाने  राज़ी होंगे   आज परचम
अब इरादों इनके  बदलाव आ गया है
 
बोलेगा कोई तो उठेगी लहर भी
क्यों समुंदर  रस्ते कटाव आ गया है
 
खेलना आता क़यामत तक हमीं से
देख मूँछों में वही  ताव आ गया है
 
रास्ता मुड़ कर  था देखा आपने कब
मोड़ पर  नाज़ुक झुकाव   आ गया है
 
अब हुकूमत की हमें बस लग चुकी लत
सच लगे हम  बेचने  भाव आ गया है
 
ख़ुश रहा  लादेन अपने पैर चल के
बस  पुतिन के मिलते ठहराव आ गया है
 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सजल
ग़ज़ल
नज़्म
कविता
गीत-नवगीत
दोहे
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता-मुक्तक
पुस्तक समीक्षा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें