आजकल जाने क्यों

01-07-2022

आजकल जाने क्यों

सुशील यादव (अंक: 208, जुलाई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

(आज़ाद ग़ज़ल)
 
एक ग़लत ख़्याल, आँखों की स्याही बदल देता है
समूचे शहर को बारूदी, तबाही बदल देता है
 
फ़र्क़ पड़ता नहीं तुम्हारे ऐशो-आराम में तनिक
आँकड़ों की मुनादी ही बस गवाही बदल देता है
 
रिश्तों को निभाना इतना नहीं आसान आपस में
ज़ुबान की ज़रा तल्ख़ी आवाजाही बदल देता है
 
मजबूरी ये कि हम बदल नहीं सकते ख़ुद पड़ोसी
सामने का मुल्क बातों की कड़ाही बदल देता है
 
छीन कर ले जाता था कोई मेरा चैन-क़रार वही
आजकल जाने क्यों तरीक़ा उगाही बदल देता है

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