आँकड़े यमराज के
सुशील यादवयमराज की कोरोना लिस्ट चित्रगुप्त की लापरवाही से मुझे लीक हो गई।
समूचे संसार के डाटा से, क्षुद्र– इंडिया के डाटा को, अलग कर पाना यूँ तो नामुमकिन था मगर देहाती कम्पूयटर मास्टर के सिखाए कुछ गुरु मंत्रों ने काम कर लिया।
तब गुरु जी को हम कहते थे, "गुरुजी आप टाइम-पास किये दे रहे हो। बड़े-बड़े डाटा अनालिसिस का अपने को कभी वास्ता ही क्या पड़ना है? हमको मिडिल-हाईस्कूल में फेल होने वाले, या कम नंबर पाने वालों का अता-पता मिल सके बस इतना सिखा दो . . .।"
गुरूजी के प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते . . .!
उनको कहते, "समझिये सर, इन अक्ल के पैदलों को ट्यूशन के लिए पकड़ना होता है। इनके माँ बाप को कन्विन्स करा के, कम्प्यूटर नालेज बाँटने का मक़सद है। हम इसी उ्द्देश्य से कम्प्यूटर सीखने आ रहे हैं।"
गुरूजी को तब के दिए बयान और आज की स्थिति में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ हो गया।
हमने चन्द्रगुप्त से आग्रह किया, "एक बार भारत दर्शन करा देवें . . ." हमारी चिरौरी को . . . जी हाँ . . . अति चापलूसी के साथ विनती को, अपने तरफ़ इसी नाम से जानते हैं, जिसे उन्होंने मान लिया।
शर्त रखी कि ‘एक झलक’ देख पाओगे . . .? उन्हें इत्मीनान था कि भक्त में हैसियत नहीं कि इफ़रात लम्बे डाटा को कोई याद कर पचाने की ताक़त भी रख सकता है!
हमने मंज़ूर वाली गर्दन, ”देख ली तस्वीरे यार” नुमा झुकाते हुए, कमीज़ के फ़्रंट पाकेट में रखे मोबाइल कमरे को संचालित किया, उनके ‘भारत-दर्शन’ कोरोना आँकड़े को तहे दिल उतार लिया।
ग़नीमत उधर ‘कम्पूटर क्रांति’ की हवा फैली नहीं थी, सो एतराज या शक की किसी सुई के चुभने जैसा सारोकार नहीं हुआ।
हमने गुप्त जी से आगे की चिरौरी अमेरिका बाबत की, तफ़सील से कारण बताया उस देश में हमारे बच्चे फँसे हैं . . . वे टॉप सीक्रेट वाला ठप्पा दिखा कर हमारी बोलती बंद कर दिए। हमें लगा, यही ख़ास फ़र्क़ अपने मेनेजमेंट और दीगर ऊपर के मेनेजमेंट में है।
हम येन-केन-प्रकारेण, पिघल जाते हैं, समझौता कर लेते हैं, किसी दबाव में आ जाते हैं या सही मानों में समझो तो मनरेगा दलालों के सामने, ये सोचते हुए कि सामने एक अच्छे भविष्य का ऑफ़र है, बिक-झुक जाते हैं!
इसी झुकने-बिकने की बदौलत, हमारे बच्चे कॉन्वेंट गोइंग, हमारा घर माली, भिस्ती, धोबी और स्टैंडरड की कामवाली बाई युक्त हो जाता है।
उधर के मेनेजमेंट ने यानी गुप्त जी ने चेतावनी के लहजे में कहा, और उत्सुकता भी जताई, "तुम हमारे साथ अभी जब ऊपर चल रहे हो, ये डाटा-साटा का आटा तुम्हारे किस काम का?"
वो नादान, हमसे आईटी रेड डालने वालों जैसा ट्रीटमेंट नहीं किये थे। मोबाइल, लैपटॉप, पेन ड्राइव आदि हमसे बलात् नहीं छुड़ाये थे। मसलन सब का स्वामित्व फ़िलहाल हमें, अभी पता नहीं कितने देर के लिए उपलब्ध था।
हमने अपने चहेते, विश्वासपात्र गनपत राय को तत्काल तलब कर लिया।
"गनपत . . . मैं बोल रा . . ."
"वा . . .वा . . .सर जी आप को होश आ गया . . . ख़ुदा का लाख लाख शुक्र है . . ."
मैंने कहा, "ये ख़ुदा-ख़ुदा कब से भजने लगा . . . मुझे ये भी याद है आज शुक्र नहीं . . . शनी है . . . बली यानी बजरंग बली का वार है . . . मैं सोमवार को भर्ती . . . ख़ैर छोड़ मेरे पास टाइम कम है . . . मैं तुझे सीक्रेट डाटा भेज रहा हूँ . . . कोरोना से रिलेटेड है, मत पूछ कहाँ से जुगाड़ा है। बस समझो ऊपर यानी यमराज ऑफ़िस से सीधे तेरे पास हाज़िर हो रहा है। काम ढंग से किया तो तेरे को नोबल पुरस्कार की नौबत आ सकती है। बीच-बीच में तुझे गाइड करता रहूँगा, इस डाटा को डिटेल में अनालाईज़ करना है।
"एस सी, एस टी, ओ बी सी के क्या परसेंटेज होंगे। कितने ग़रीब-कितने अमीर चपेट में आयेंगे तुझे आसानी से पता चलता रहेगा . . . यार यक़ीन कर . . .।
"किस खेमे से कितने टूटेंगे . . . किस पार्टी का कौन दिग्गज दिवंगत होगा? चोर, लुटेरों, दाता-दानी सब एक साथ कैसे नपेंगे, दानियों को भी कन्सेशन नहीं मिलेगा ।
"मंत्री-संतरी के बीच ‘उठने’ वालों का क्या आँकड़ा रहेगा? तू इस डाटा के मार्फ़त जान सकेगा . . .।
"और गनपत ख़ास बात तो ये कि इसमें आगामी काल में आत्मा-विहीन होने वालों की भी जानकारी है . . . समझो तहलका मच जाएगा . . . यानी लोग नास्त्रेदमस एस्ट्रानामर को लोग भूल जायेंगे! है कि नईं? ‘गुप्त जी’ यम-वाले की ख़ास हिदायत है . . . सीक्रेसी मेंटेन हो!
"अरे तू क्या सोच रहा है– मैं भर्ती होते ही सठिया गया . . .?
"अरे नहीं बाबा . . . तुझसे, आगे ये डाटा बात करेंगे . . . ज़रा कम्प्यूटर आन कर, एक्सेल खोल, डाटा पढ़, मुझे सुना....."
"सर जी चमत्कार हो गया . . . यक़ीनन आप इतनी जल्दी कहीं से भी, कैसे भी इन आँकड़ों के जनक, डाटा इंट्री कर्ता हो ही नहीं सकते! मैं तत्काल आईसीयू पहुँचने की कोशिश करता हूँ, पूरी दुनिया इस सच्चाई के रूबरू होने के बाद भी मान ही नहीं सकेगी! जीने-मरने वालों की फ़ेहरिस्त आगामी पूरे एक साल की आपने दी है . . . ग़ज़ब ! साहब जी सुन रहे हैं . . . ? साहेब जी . . . ??
"शायद नेटवर्क कमज़ोर हो गया . . . इस अम्फान के तूफ़ान को भी अभी आना था! . . . लाईट गुल! अँधेरा . . . साथ में तमाम डाटा बिना सेव किये रह गया . . . अफ़सोस . . . !
"चल देखूँ साहेब कि मोबाइल में फ़ारवर्ड करते समय कुछ रह-बच गया हो . . . ?"
आईसीयू के बोर्ड पर साहब के दाख़िले और मौत की तिथि कोई चाक से लिख रहा था।
मैंने साहेब के मोबाइल की दरयाफ़्त की . . . पता चला कोई सगा अभी-अभी ले के निकल गया है।
उस नम्बर पर अब केवल नो रिप्लाई है ।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- ग़ज़ल
-
- अधरों की अबीर . . .
- अन-मने सूखे झाड़ से दिन
- अपनी सरकार
- अवसर
- आजकल जाने क्यों
- आदमी हो दमदार होली में
- आज़ादी के क्या माने वहाँ
- इतने गहरे घाव
- इश्तिहार निकाले नहीं
- उन दिनों ये शहर...
- एतराज़ के अभी, पत्थर लिए खड़े हैं लोग
- कब किसे ऐतबार होता है
- कभी ख़ुद को ख़ुद से
- कामयाबी के नशे में चूर हैं साहेब
- कितनी थकी हारी है ज़िन्दगी
- किन सरों में है . . .
- कुछ मोहब्बत की ये पहचान भी है
- कोई जब किसी को भुला देता है
- कोई मुझको शक ओ शुबहा नहीं रहा
- कोई सबूत न गवाही मिलती
- गर्व की पतंग
- छोटी उम्र में बड़ा तजुर्बा.....
- जब आप नेक-नीयत
- जले जंगल में
- जिसे सिखलाया बोलना
- तन्हा हुआ सुशील .....
- तुम नज़र भर ये
- तुम्हारी हरकतों से कोई तो ख़फ़ा होगा
- तू मेरे राह नहीं
- तेरी दुनिया नई नई है क्या
- तेरे बग़ैर अब कहीं
- दर्द का दर्द से जब रिश्ता बना लेता हूँ
- दायरे शक के रहा बस आइना इन दिनों
- देख दुनिया . . .
- देखा है मुहब्बत में, हया कुछ भी नहीं है
- पास इतनी, अभी मैं फ़ुर्सत रखता हूँ
- बचे हुए कुछ लोग ....
- बस ख़्याल बुनता रहूँ
- बस ख़्याले बुनता रहूँ
- बादल मेरी छत को भिगोने नहीं आते
- बिना कुछ कहे सब अता हो गया
- बुनियाद में
- भरी जवानी में
- भरी महफ़िल में मैं सादगी को ढूँढ़ता रहा
- भरे ग़म के ये नज़ारे समझ नहीं आते
- मत पुकारो मुझे यों याद ख़ुदा आ जाए
- माकूल जवाब
- मिल रही है शिकस्त
- मुफ़्त चंदन
- मेरा वुजूद तुझसे भुलाया नहीं गया
- मेरे शहर में
- मेरे सामने आ के रोते हो क्यों
- मेरे हिस्से जब कभी शीशे का घर आता है
- मेरे क़द से . . .
- मैं सपनों का ताना बाना
- मौक़ा’-ए-वारदात पाया क्यों गया
- यूँ आप नेक-नीयत
- यूँ आशिक़ी में हज़ारों, ख़ामोशियाँ न होतीं
- यूँ भी कोई
- ये है निज़ाम तेरा
- ये ज़ख़्म मेरा
- रूठे से ख़ुदाओं को
- रोक लो उसे
- रोने की हर बात पे
- वही अपनापन ...
- वही बस्ती, वही टूटा खिलौना है
- वादों की रस्सी में तनाव आ गया है
- वो जो मोहब्बत की तक़दीर लिखता है
- वो परिंदे कहाँ गए
- शहर में ये कैसा धुँआ हो गया
- समझौते की कुछ सूरत देखो
- सहूलियत की ख़बर
- साए से अलग हो के वो जाते नहीं होंगे
- साथ मेरे हमसफ़र
- सफ़र में
- हथेली में सरसों कभी मत उगाना
- हम शराफ़त में कहीं तो आड़े, या तिरछे मिले हैं
- क़ौम की हवा
- ग़ौर से देख, चेहरा समझ
- ज़िद की बात नहीं
- ज़िन्दगी में अँधेरा . . .
- ज़िन्दगी में अन्धेरा
- ज़िन्दा है और . . .
- ज़ुर्म की यूँ दास्तां लिखना
- सजल
- नज़्म
- कविता
- गीत-नवगीत
- दोहे
-
- अफ़वाहों के पैर में
- चुनावी दोहे
- दोहे - सुशील यादव
- पहचान की लकीर
- प्रार्थना फूल
- माँ (सुशील यादव)
- लाचारी
- वर्तमान परिवेश में साहित्यकारों की भूमिका
- सामयिक दोहे – 001 – सुशील यादव
- सामयिक दोहे – 002 – सुशील यादव
- साल 20 वां फिर नहीं
- सुशील यादव – दोहे – 001
- सुशील यादव – दोहे – 002
- सुशील यादव – दोहे – 003
- सुशील यादव – दोहे – 004
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
-
- अपना-अपना घोषणा पत्र
- अवसाद में मेरा टामी
- आँकड़े यमराज के
- आत्म चिंतन का दौर
- आसमान से गिरे...
- एक छद्म इंटरव्यू
- एक झोला छाप वार्ता......
- एक वाजिब किसान का इंटरव्यू
- गड़े मुर्दों की तलाश......
- चलो लोहा मनवायें
- जंगल विभाग
- जो ना समझे वो अनाड़ी है
- डार्विन का इंटरव्यू
- तुम किस खेत की मूली हो?
- तू काहे न धीर धरे ......।
- दाँत निपोरने की कला
- दिले नादां तुझे हुआ क्या है ...?
- दुलत्ती मारने के नियम
- नन्द लाल छेड़ गयो रे
- नया साल, अपना स्टाइल
- नास्त्रेदमस और मैं...
- निर्दलीय होने का सुख
- नज़र लागि राजा. . .
- पत्नी का अविश्वास प्रस्ताव
- पत्नी की मिडिल क्लास, "मंगल-परीक्षा"
- पीर पराई जान रे ..
- प्रभु मोरे अवगुण चित्त न धरो
- बदला... राजनीति में
- भरोसे का आदमी
- भावना को समझो
- मंगल ग्रह में पानी
- मेरी विकास यात्रा. . .
- रायता फैलाने वाले
- विलक्षण प्रतिभा के -लोकल- धनी
- सठियाये हुओं का बसंत
- सबको सन्मति दे भगवान
- साहब पॉज़िटिव हो गए
- सिंघम रिटर्न ५३ ....
- कविता-मुक्तक
- पुस्तक समीक्षा
- विडियो
-
- ऑडियो
-