कुछ मोहब्बत की ये पहचान भी है 

01-09-2023

कुछ मोहब्बत की ये पहचान भी है 

सुशील यादव (अंक: 236, सितम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

(आज़ाद ग़ज़ल)

 

कुछ मोहब्बत की ये पहचान भी है 
कहीं नफा तो कहीं नुक़्सान भी है 
 
अभी फ़ासला हमारे बीच है अगर 
बचाव की उम्मीद दरमियान भी है 
 
टूटी हुई कश्तियाँ कई पार लगी हैं
कतरे हुए परों के यहाँ निशान भी है
 
महज़ खेलने खाने के दिन थे उसके
लूटने लुटाने से वो अनजान भी है 
 
आदमी भीतर शैतान छुपा न कहो
ढूँढ़ के निकालो ज़रा भगवान भी है

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