मचला है मासूमियत पारा हो जाए 

01-05-2024

मचला है मासूमियत पारा हो जाए 

सुशील यादव (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)


मचला है मासूमियत पारा हो जाए
जितना रब से माँगो तुम्हारा हो जाए
 
राह तुमने कल बिछाये तल्ख़ काँटे 
फूल में तब्दील वो सारा हो जाए
 
देख दाता सब के ऊपर है हिसाबी
कर इबादत जान दिल प्यारा हो जाए
 
भेज दो तुम पत्र जिसको हाथ से लिख
बस मुहब्बत का वही हरकारा हो जाए
 
ये धुआँ सा क्या उठा है दिल में तेरे
आग जलकर साफ़ अंगारा हो जाए
 
याद जंगल भूल भटका तेरे ख़ातिर 
 मन कहीं लगता ना बंजारा हो जाए
 
तुझ को चुनने की ये ग़लती हो गई है
काश ना अब मुझसे दोबारा हो जाए

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