पास थी ख़ुद्दारियाँ लेकिन मुसीबत कम न थी

15-06-2025

पास थी ख़ुद्दारियाँ लेकिन मुसीबत कम न थी

सुशील यादव (अंक: 279, जून द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

बहर: रमल मुसम्मन महज़ूफ़
अरकान: फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन
तक़्तीअ: 2122    2122    2122    212
 
पास थी ख़ुद्दारियाँ लेकिन मुसीबत कम न थी
तेरी चाहत की बुलंदी यूँ हक़ीक़त कम न थी
 
एक हम थे ज़िन्दगी की राह में सबसे जुदा 
गो हमारे सामने सब की ख़िलाफ़त कम न थी
 
लौट कर आते नहीं गुज़रे हुए दिन फिर कभी
हौसला देते थके-माँदे वो राहत कम न थी
 
नाप ने क़द सोचते हो तुम यक़ीनन बारहा
सोच के पीछे मगर तेरी 'अदावत कम न थी
 
मैं हूँ ज़िन्दा अब ख़ुशी से काटता हूँ ज़िन्दगी
आदमी हूँ मुस्कुराने की यूँ आदत कम न थी
 
मेरे नक़्शे-पा अभी चल कौन पाता है यहाँ
तल्ख़ बातें और मेरी फिर नसीहत कम न थी
 
मेरा सरमाया मिरी ख़ामोशियाँ मुझ में रहे
बस यही वो ख़ूबियाँ मुझ में ग़नीमत कम न थी
 
(शब्दार्थ: ख़िलाफ़त=उत्तराधिकार; 'अदावत=शत्रुता, द्वेष; तल्ख़=कड़वा, कड़वी) 

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