कितनी थकी हारी है ज़िन्दगी

01-05-2022

कितनी थकी हारी है ज़िन्दगी

सुशील यादव (अंक: 204, मई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

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कितनी थकी हारी है ज़िन्दगी 
लगती मगर प्यारी है ज़िन्दगी
 
सब नगद की चाहत लिए खड़े
किसकी नक़ल उतारी है ज़िन्दगी
 
कितनी चढ़ी प्रभु नाम पतंगे
दुख से भरी भारी है ज़िन्दगी
 
हम मसखरी में कह नहीं सके 
जंग तुझ से जारी है ज़िन्दगी
 
सब छोड़ चले बारी बारी मगर 
कब अपनी बारी है ज़िन्दगी 
 
वो चेहरा बिगड़ा हमें मिले
सौ जतन संवारी है ज़िन्दगी
 
हमसे तमंचे की तमीज़ ले
खादी पहन गुज़ारी है ज़िन्दगी

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