भरी महफ़िल में मैं सादगी को ढूँढ़ता रहा
सुशील यादव
बहर-ए-ज़मज़मा: मुतदारिक मुसद्दस मुज़ाफ़
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
22 22 22 22 22 22
भरी महफ़िल में मैं सादगी को ढूँढ़ता रहा
तुझको पाकर भी ज़िन्दगी को ढूँढ़ता रहा
सब लोग व्यस्त थे सूरज की जुगाड़ में
दीये तले मैं ही रौशनी को ढूँढ़ता रहा
जिस फूल की कभी वो ख़ुश्बू चुरा गई
तमाम उम्र उसी तितली को ढूँढ़ता रहा
ना जाने कोई मुराद कब पूरी होती
मैं ख़्वाब में बस यूँ ख़ुशी को ढूँढ़ता रहा
मेरे भीतर मिला नहीं सख़्त आदमी
एक अरसे तक उस कमी को ढूँढ़ता रहा
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