दर्द का दर्द से जब रिश्ता बना लेता हूँ

15-05-2022

दर्द का दर्द से जब रिश्ता बना लेता हूँ

सुशील यादव (अंक: 205, मई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

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दर्द का दर्द से जब रिश्ता बना लेता हूँ
इस बहाने सभी को अपना बना लेता हूँ
 
ख़ास कुछ हैं मुकर जाते बात से अपनी
आदमी मान के अलग रास्ता बना लेता हूँ
 
मज़हबी दौड़ में जा के मुल्क क्या हासिल करे
ख़ौफ़ में अब धमाका ज़्यादा बना लेता हूँ
 
धूप में ढूँढ़ता मैं साया किसी बरगद का
छाँव क़ोई क़सीदा मन का बना लेता हूँ
 
फूल से है मुझे रंज ख़ुश्बुओं से परहेज़
याद में बारहा क्यूँ बग़ीचा बना लेता हूँ
 
बहलता अब नहीं आपे से ज़माना बाहर
ख़ुश वहाँ हो सकूँ घरोबा बना लेता हूँ

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