मेरे सामने आ के रोते हो क्यों

01-06-2024

मेरे सामने आ के रोते हो क्यों

सुशील यादव (अंक: 254, जून प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

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मेरे सामने आ के रोते हो क्यों
इरादों की कश्ती डुबाते हो क्यों 
 
नहीं जान पाते, शराफ़त चलन
कोई पिन शरारत, चुभाते हो क्यों
 
शिकायत ज़माना, करेगा नहीं 
फ़सल वो ही बीमार, बोते हो क्यों
 
लदे हों कई बोझ, पर उफ़ नहीं
बशर तुम, तमाशा ये ढोते हो क्यों
 
अकेले मिले हो बता हर जगह
अदब की रिदा नम सुखोते हो क्यों
 
घनी बस्तियों मामला रोज़ का
मगर तुम फटे हाल होते हो क्यों
 
सियासत अजब खेल माना सही
यहाँ आप आपा यूँ खोते हो क्यों

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