अँधेरे में यादों की परछाईं रखता है

01-05-2024

अँधेरे में यादों की परछाईं रखता है

सुशील यादव (अंक: 252, मई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

22    22    22    22    22    22
 
अँधेरे में यादों की परछाईं रखता है
एक वही तो बस दूर की बीनाई रखता है
 
जिसके हाथ खुले पर पैरों में ज़ंजीरें
वह बातें तनहा जग हँसाई रखता है
 
दिखता फटेहाल उसने सीखा यहीं सलीक़ा
अब नादान जेब अच्छी सिलाई रखता है
 
हमको बखिया उधेड़ने की धुन रहती है
वही यक़ीनन वाजिब तुरपाई रखता है
 
हम तो ढूँढ़ रहे, टूटे रिश्तों के वुजूद
मन ये कबाड़ बुनी चारपाई रखता है
 
सब ने देखा उसको, दूर शहर से आते
कहने सरमाया फ़कत चटाई रखता है

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सजल
ग़ज़ल
नज़्म
कविता
गीत-नवगीत
दोहे
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
कविता-मुक्तक
पुस्तक समीक्षा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में

लेखक की पुस्तकें